-मेहेर वान
अमेरिका में ऑनलाइन दस्तावेजों की चोरी और अवैध नकल को रोकने सम्बन्धी
कानून बनाने को लेकर शुरु हुये विवादों का कोई स्पष्ट निबटारा नहीं हो सका है। इस मुद्दे
पर अमेरिकी मनोरंजन और फ़िल्म निर्माण सम्बन्धित उद्योगों के लोगों में एक धूमिल विभाजक
रेखा उभर कर सामने आने लगी है। इन उद्योगों से जुड़े लोग इस विवाद में चाहे जिस ऒर हों,
मगर इंटरनेट इस्तेमाल करने वाली आम जनता ने, अमेरिकी सरकार द्वारा प्रस्तावित ऑनलाइन
दस्तावेज़ों की अवैध नकल और चोरी रोकने सम्बन्धी कानूनों का बड़े पैमाने पर विरोध किया
है। अमेरिकी संसद में पास किये जाने के लिये प्रस्तावित “ऑनलाइन अवैध नकल रोधक अधिनियम
(SOPA)” और “बौद्धिक सम्पदा सुरक्षा अधिनियम (PIPA)” के विरोध में विश्व भर की जनता
ने विरोध जताया है। विशेषज्ञों का मानना है कि इस तरह का अधिनियम आने पर इंटरनेट पर
स्वतंत्र इच्छाशक्ति और स्वतंत्र अभिव्यक्ति की संकल्पना खत्म हो जायेगी।
पिछले दिनों भारत में भी मानव संसाधन एवं विकास मंत्री कपिल सिब्बल
द्वारा सोशल नेटवर्किंग वेबसाइट्स पर राष्ट्रविरोधी और देश के खास वर्ग के लोगों में
असंतोष और हिंसा भड़काने वाले वक्तब्यों को सार्वजनिक रूप से पोस्ट करने पर रोक लगाने
के सम्बन्ध में बयान दिये गये थे। वस्तुतः ये बयान भी अमेरिकी संसद में बहस के लिये
प्रस्तुत किये जाने वाले कानूनों से प्रभावित होकर दिये जाने वाले बयान कहे जा सकते
हैं। इन बयानों के कारण कपिल सिब्बल को भी काफ़ी विरोध का सामना करना पड़ा था। ठीक यही
अमेरिका के “ऑनलाइन अवैध नकल रोधक अधिनियम” और “बौद्धिक सम्पदा सुरक्षा अधिनियम” के
साथ भी हुआ है। ये अधिनियम इंटरनेट पर बौद्धिक सम्पदा की सुरक्षा और ऑनलाइन दस्तावेज़ों
की अवैध नकल रोकने के लिये बनाये जाने वाले थे। वस्तुतः इन अधिनियमों का प्रमुख निशाना
अमेरिका के बाहर से संचालित होने वाली वे वेबसाइट्स हैं जिन पर फ़िल्मों और संगीत से
लेकर अन्य बौद्धिक सम्पदा उपलब्ध है और इन इन वेबसाइट्स से फ़िल्में, संगीत आदि को बिना
कोई भुगतान किये डाउनलोड किया जा सकता है। इस तरह से फ़िल्मों और संगीत से जुड़ी कई मनोरंजन
कम्पनियों को काफ़ी नुकसान उठाना पड़ता है। अनेकों वेबसाइट्स पर टीवी चैनलों के कई रियालिटी
शो और खेल प्रतियोगितायें अवैध तरीके से दिखाईं जाती हैं। इंटरनेट के ज़रिये इन्हीं
अवैध तरीकों से पैसे कमाने पर रोक लगाने के लिये अमेरिकी सरकार, दो विधेयक संसद में
बहस के लिये लाने वाली थी। लेकिन इन विधेयकों का स्वरूप कुछ इस तरह है कि इन विधेयकों
के पास होने पर गूगल जैसे बड़े सर्च इंजन और फ़ेसबुक जैसी सोशल वेबसाइट्स भी सीधे तौर
पर खतरे में पड़ जायेंगीं, जिन्होंने इंटरनेट को एक बड़े उद्योग के रूप में प्रतिष्ठित
किया है।
इंटरनेट पर अवैध नकल रोकने और बौद्धिक सम्पदा सुरक्षा के सम्बन्ध
में पहले से ही कई नियम हैं। इन नियमों को ध्यान में रखते ही गूगल द्वारा संचालित वेबसाइट
“यूट्यूब” पर पिछले वर्ष वीडियो हटाने सम्बन्धी लगभग पाँच लाख शिकायतें आयीं थी, गूगल
के अनुसार जिनमें से वैध शिकायतों का निबटारा छैः घन्टे की समय सीमा के अन्दर किया
गया था। इसी तरह संवैधानिक तरीके से निवेदन करने पर विभिन्न वेबसाइट्स को संचालित करने
वाले सर्वरों द्वारा विवादित दस्तावेज़ वेबसाइट से हटा लिये जाते हैं। गूगल जैसे सर्च
इंजन भी विवादित दस्तावेज़ों वाली वेबसाइट्स से न्यायालय के आदेश पर या संवैधानिक निवेदन
पर सिर्फ़ विवादित दस्तावेज़ अदृश्य कर देते हैं। लेकिन “ऑनलाइन अवैध नकल रोधक अधिनियम”
और “बौद्धिक सम्पदा सुरक्षा अधिनियम” में इस सम्बन्ध में बहुत ही कठोर दण्डों का प्रावधान
है। इन अधिनियमों का सबसे कमज़ोर पक्ष यह है कि इन अधिनियमों में बहुत ही अस्पष्ट शब्दावली
का प्रयोग किया गया है। जैसे कि अगर किसी वेबसाइट या सर्च इंजन पर कोई अवैध सामग्री
पाई जाती है तो उसके खिलाफ़ कार्यवाई में पूरी वेबसाइट या सर्च इंजन के सर्वर को ब्लॉक
यानि बन्द कर दिया जायेगा। यानि कि अगर फ़ेसबुक जैसी वेबसाइट पर कोई सामान्य उपभोक्ता
आपत्तिजनक या अवैध सामग्री पोस्ट करता है तो पूरी फ़ेसबुक वेबसाइट का अस्तित्व खतरे
में पड़ जायेगा। इन अधिनियमों में आपत्तिजनक सामग्री वाली वेबसाइट्स के बैंक एकाउँट
और पेनपाल जैसी सुविधायें भी बन्द कर दिये जाने का प्रस्ताव है। इस तरह ये कानून इंटरनेट
उद्योग की दशा और दिशा में अप्रत्याशित परिवर्तन करने वाले हैं, और अधिकतम परिवर्तन
मुख्यतः नकारात्मक ही होंगे।
पिछले दिनों तमाम वेबसाइट्स
ने इन अधिनियमों के खिलाफ़ आवाज़ उठाई है। प्रसिद्ध गैर-लाभग्राही वेबसाइट विकीपीडिया
ने 24 घंटों तक अपनी स्क्रीन काली रखी। गूगल और याहू समेत नौ तकनीक कम्पनियों ने अमेरिकी
सरकार को पत्र लिखकर याद दिलाया कि 13 महत्वपूर्ण देशों की जीडीपी में 3.4 प्रतिशत
योगदान इंटरनेट का होता है, जबकि अमेरिकी अर्थव्यवस्था में इंटरनेट का योगदान अन्य
देशों की तुलना में सर्वाधिक है। गूगल और विकीपीडिया की मुहिम को विश्व भर में लाखों
इंटरनेट उपभोक्ताओं का समर्थन मिला है। कुछ विशेषज्ञों का मानना है कि इस तरह के कानून, अमेरिकी वेबसाइट्स को नुकसान पहुँचाये बिना, अमेरिका
के बाहर की वेबसाइट्स को बन्द किये जाने के
लिये किये गये साफ़ सुथरे प्रयास हैं। वास्तव में, सिलिकन वेली के पास ’स्पॉटीफ़ाई’ और
’नेट्फ़्लिक्स’ जैसे भी कुछ सेवा प्रदान करने वाले प्रक्रम हैं, जो कि इस तरह के अधिनियमों
के बिना इस गम्भीर समस्या पर काबू पा सकते हैं। सही मायनों में, इंटरनेट पर अवैध नकल
और दस्तावेज़ों की चोरी की समस्या से निबटने के लिये इस उद्योग के रचनात्मक लोगों पर
ही विश्वास किया जाना चाहिये कि वे नये उपक्रमों से ये अपराध कम कर पायेंगे। राजनीतिक
नियमों और गुटबाज़ी से ये समस्यायें और जटिल होतीं चलीं जायेंगीं।
सार्थक आलेख.
ReplyDeleteThanks a lot.... :)
ReplyDeleteThanks a lot.... :)
ReplyDeleteThanks a lot.... :)
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