Monday, January 24, 2011

खोजी पत्रकारिता का नया आयाम: विकीलीक्स

जूलियन असांज ने विकीलीक्स वेबसाइट के रूप में पत्रकारिता को एक नया आयाम दिया है। ऐसे में जब दुनियाँ भर में पत्रकारिता लगातार विवादों से घिर रही है, विकीलीक्स ने न केवल अपने जुझारुपन और सतर्कता के साथ पत्रकारिता को एक नयी दिशा दी है बल्कि समाज और मानव अधिकारों के प्रति अपनी निष्ठा की मिसाल पेश की है। जूलियन असांज की लगन, दूर-दृष्टि और तकनीकी कुशलता की इस कार्य में महत्वपूर्ण भूमिका है। यह बात अलग है कि यह बृहद और विस्तृत कार्य सिर्फ़ और सिर्फ़ जूलियन असांज के द्वारा नहीं किया जा रहा है, इस कार्य़ में जूलियन असांज के साथ नौ सदस्यों वाली टीम और पूरी दुनियाँ में फैले लगभग आठ सौ स्वयंसेवक संलग्न हैं। जूलियन असांजे विकीलीक्स के संस्थापक और एडिटर-इन-चीफ हैं। वे आस्ट्रेलियाई मूल के एक इंटरनेट कार्यकर्ता हैं। विकीलीक्स शुरू करने से पहले असांजे भौतिकी और गणित के छात्र, एक विशेषज्ञ हैकर और कंप्यूटर प्रोग्रामर थे। वर्तमान में वह वेबसाइट के एडवाइजरी बोर्ड में बैठते हैं। उनके आलोचकों का कहना है कि जूलियन असांज प्रचार के भूखे हैं और प्रशंसक उन्हें सच का सिपाही मानते हैं, लेकिन जूलियन का लक्ष्य है दुनियाँ में अधिक पारदर्शिता लाना, और यही ज़िंदगी में आगे बढ़ने का उनके लिये एकमात्र मक़सद हैअसांजे पत्रकारिता की स्वतंत्रता के पक्षधर हैं जूलियन के साथ काम करने वाले कहते हैं कि वो कंप्यूटर-कोडिंग के महारथी और एक ऐसे एक शख्स हैं जिनकी बुद्धिमता और लगन ने उन्हें इस मुकाम पर खड़ा किया है। कई घन्टॊं तक बिना कुछ खाये-पिये काम करते रहना उनकी सामान्य दिनचर्या का हिस्सा है। वे लगातार यात्रायें करते हैं। अपने लैपटॉप और एक पिट्ठू बैग के साथ जहाँ भी उन्हें ज़रूरी सूचनायें मिलने की संभावना रहती है, वे निकल पड़ते है
    विकीलीक्स की स्थापना जूलियन असांज ने कम्प्यूटर के जानकार कुछ मित्रों के साथ सन 2006 में की थी। यह एक ऐसी वेबसाइट है जो कि किसी देश की सरकार, कंपनी, संस्था या किसी धार्मिक संगठन से सम्बन्धित वे जानकारियाँ इंटरनेट पर उपलब्ध कराती है, जिनका सीधा सम्बन्ध जनता के किये बनायी गयी नीतियों या मानव अधिकारों से होने के बावजूद दुनियाँ से छुपा ली जातीं हैं। यह एक अंतरराष्ट्रीय गैर लाभ मीडिया संगठन है जो कि वेबसाइट और इंटरनेट की सहायता से पत्रकारिता करता है। विकीलीक्स को कोई भी व्यक्ति ऐसी जानकारी इलेक्ट्रॉनिक ड्रॉप बॉक्स के जरिए दे सकता है, जो सेंसर्ड हो, प्रतिबंधित हो या पहले कभी न प्रकाशित हुई हो। विकीलीक्स की वेबसाइट पर खबर देने संबंधित जानकारी जुटाने के लिए ऑन लाइन चैट की भी सुविधा है। इस वेबसाइट को पर अपलोड की गयी सामग्रियों की कुछ कार्यकर्ता जाँच करते हैं फिर इन्हें वेबसाइट पर प्रकाशित किया जाता है ये सभी कार्यकर्ता पत्रकार है  विकीलीक्स यह सुनिश्चित करती है कि यह जानकारी किसी को न मिल सके कि पीडीएफ़ फ़ाइल्स, वर्ड डॉक्युमेंट, स्कैनर और प्रिंटर का स्रोत क्या था जिससे कि सूचनाएँ भेजने वाले व्यक्ति की पहचान छिपी रह सके। विकीलीक्स वेबसाइट साथ में अपलॊड की गयी सूचनाओं को कम्प्यूटरीकृत कूट भाषा में बदल देती है। जिससे सूचनायें देने वाले स्त्रोत के बारे में कोई जानकारी उपलब्ध नहीं हो पाती। इस वेबसाइट से उपयोगी सूचनाओं को हैकिंग से बचाने के लिये भी विकीलीक्स सदैव सतर्क रहती है। यह किसी भी समय अपने सर्वर में महत्वपूर्ण सूचनाओं के साथ सैकडों जाली या आभासी सूचनायें स्वयं अपलॊड करती रहती है जिससे भी बाहर से जो हैकर्स इस वेबसाइट के डेटा को हैक करने के प्रयास में लगे होते हैं वे असली डेटा और नकली डॆटा में फ़र्क नहीं कर पाते हैं। इस तरह अपलोड की जा रही सामग्री को हैकिंग से बचाया जाता है। वर्ष 2006 में शुरु की गई इस वेबसाइट पर इस समय दस लाख से ज़्यादा दस्तावेज़ मौजूद हैं। यह दुनिया का पहला समाचार संस्थान है जो किसी देश का नहीं है         
      विकीलीक्स ने अमेरिका की नींद उडा दी है। विकीलीक्स वेबसाइट द्वारा जारी किये गये दस्तावेज़ों से यह साफ़ पता लगता है कि अफ़गानिस्तान और इराक युद्धों में अमेरिका ने शान्ति के नाम पर वहाँ की जनता के साथ कितने ज़ुल्म ढाये। अमेरिका अब तक इराक युद्ध में मारे गये नागरिकॊं की संख्या को ज़रूरत से ज़्यादा घटाकर बताता रहा था। एक गैर सरकारी संगठन के सर्वे के अनुसार यह संख्या एक लाख के आस पास थी जिस पर अमेरिका ने कहा था कि ये संगठन युद्ध में हुई मौतों के सम्बन्ध में अतिशियोक्ति कर रहा है। विकीलीक्स वेब्साइट के आँकडों के अनुसार इराक युद्ध में एक लाख बाईस हज़ार से भी अधिक मौतें हुई। विकीलीक्स विभिन्न दस्तावेज़ों को अपनी वेबसाइट पर प्रकाशित करने के साथ साथ कई प्रतिष्ठ्त अखबारों को भी प्रकाशन के लिये भेजता है। प्रतिष्ठित अखबार द गार्ज़ियन के अनुसार वेबसाइट के इन आँकड़ॊं में पन्द्रह हज़ार से भी अधिक ऐसी मौतों का रिकार्ड है जिसके बारे में कहीं से कोई सूचना नहीं थी। गार्ज़ियन ने ज़ोर देते हुये यह भी लिखा है कि विकीलीक्स के आँकड़ो से यह तय है कि इराक में आम जनता के साथ हो रही यातनाऒं के बारे में अमेरिकी जनरलों को सूचना थी मगर फिर भी इस सम्बन्ध में कोई कदम नहीं उठाया गया। अख़बार ने ऐसे हादसों की कुछ मार्मिक तस्वीरें भी छापी हैं इसकी सबसे विशेष बात यह है कि तस्वीर सहित इन दस्तावेज़ों को जुटाने और हासिल करने के लिए कितने बड़े स्तर पर कोशिश करनी पड़ी होगी दूसरी चौंकाने वाली बात यह है कि इराक़ में यह कार्रवाई राष्ट्रपति ओबामा के पद संभालने के एक साल तक चलती रहींवहीं अख़बार ने यह भी लिखा है कि आत्मसमर्पण कर रहे चरमपंथियों को एक हेलिकॉप्टर से गोलाबारी करके मार डाला गया उसके मुताबिक़ उस घटना में रॉयटर्स समाचार एजेंसी के दो पत्रकारों को चरमपंथी समझ कर मार दिया गया था। इराक युद्ध से जुड़े इसी तरह के लगभग चार लाख दस्तावेज़ विकीलीक्स ने अक्टूबर २०१० में प्रकाशित किये हैं। जिससे पूरी दुनियाँ में खलबली मचने के साथ अमेरिका के शान्ति अभियान की असलियत भी सामने आ गयी है।
       यह तथ्य कमाल का है कि अमेरिका के खिलाफ़ इतनी जानकारियाँ जुटाना और उन्हें इंटरनेट पर प्रकाशित करके बेबसाइट को सुचारु रूप से चलाना कोई साधारण बात नहीं है। अमेरिका इंटरनेट की दुनियाँ की बहुत बड़ी शक्ति है। वेबसाइटों को चलाने के लिये आवश्यक अधिकतम सर्वर अमेरिका के नियंत्रण में है। अमेरिका जब चाहे किसी भी वेबसाइट को बन्द कर सकता है। अगर स्वयं अमेरिका ऐसा नहीं कर पाता तो वेबसाइट को हैक करके उसके क्रियान्वयन को बन्द करवा देना अमेरिका की नीति रही है। विकीलीक्स वेबसाइट को भी कई बार हैकिंग के बहुत गम्भीर खतरों का सामना करना पड़ा। कई बार विकीलीक्स वेब साइट को डिनायल ऑफ़ सर्विस के हमले किये गये। इस तरह के हमलों में वेबसाइट से इतनी अधिक मात्रा में डॆटा की माँग की जाती है कि वेबसाइट, डॆटा की अत्यधिक माँग के कारण काम करना बन्द कर देती है। इस तरह के अनेक हमले विकीलीक्स तभी से झेल रही है जब से उसने अमेरिका के खिलाफ़ सूचनाये लीक कीं हैं। मगर विकीलीक्स के संस्थापक और एडीटर-इन-चीफ़ जूलियन अयाँज भी हैकिंग के विशेषज्ञ और बुद्धिमान व्यक्ति हैं। आज विकीलीक्स की 1289 मिरर वेबसाइट हैं। मिरर वेबसाइट से मतलब है कि एक ही वेबसाइट के कई प्रतिरूप तैयार करके कई पतों पर स्थापित कर दिये जायें। इस तरह अमेरिका जैसी इंटरनेट की महाशक्ति भी इस वेबसाइट को बन्द नहीं कर पायी है और न ही इसके क्रियान्वयन को प्रभावित कर पायी है। इस सम्बन्ध में स्वयं जूलियन अयांज का कहना है, अपने स्रोतों को सुरक्षित रखने के लिए हमें अलग-अलग देशों से काम किया अपने संसाधनों और टीमों को भी हम अलग-अलग जगह ले गए, ताकि कानूनी रुप से सुरक्षित रह सकें अब हम ये सब करना सीख गए हैं आज तक न हमने कोई केस हारा है न ही अपने किसी स्रोत को खोया है”   
    कम्प्यूटर हैकिंग का ज़िक्र अक्सर नकारात्मक रूप में होता है। लेकिन आज नैतिक हैकिंग    कम्प्यूटेशन के क्षेत्र की एक स्वतंत्र विधा बनकर उभर चुकी है। जिसमें हैकिंग किसी सकारात्मक उद्देश्य से की जाती है और किसी संस्था के डॆटा में सेंध लगाने से पहले  ही सम्बन्धित अधिकारियों को सूचना दे दी जाती है। विकीलीक्स से पहले हैकिंग का पत्रकारिता से कोई सम्बन्ध नहीं सोचा गया था। नैतिक हैकिंग का इस्तेमाल पत्रकारिता में करके जूलियन असांज ने पत्रकारिता को न सिर्फ़ नये आयाम दिये हैं बल्कि किसी बदनाम तकनीक के सकारात्मक उपयोग के नये रास्ते खोले हैं। लेकिन इस प्रक्रिया में  जूलियन के तमाम विरोधी भी पैदा हो गये हैं। हमें जूलियन असांज के समर्थन में एकजुट होना चाहिये। सबसे दुखद तथ्य तो यह है कि तमाम जनकल्याणकारी तकनीकों का नकारात्मक इस्तेमाल सबसे पहले अमेरिका करता है चाहे परमाणु बम, रोबोटिक्स हो या कॊई अन्य तकनीक; वही अमेरिका जूलियन असांज पर तकनीक के दुरुपयोग करने के निराधार आरोप गढ़ रहा है।     
मेहरबान 


Wednesday, January 19, 2011

एन्टीमैटर- बृह्माण्ड की उत्पत्ति का रहस्य

       हमारा अस्तित्व क्यों है?” यह प्रश्न सदैव से मानव मष्तिस्क के लिये एक महत्वपूर्ण प्रश्न रहा है। दार्शनिकों के लिये कुछ सदियों से और भौतिकविदों के लिये कुछ दशकॊं से यह बहस का महत्वपूर्ण मुद्दा रहा। जहाँ दार्शनिक मानव जीवन के लक्ष्य अथवा भाग्य  को आधार बनाकर इस प्रश्न का उत्तर खोजने का प्रयास करते रहे वहीं भौतिकविद बृह्माण्ड की उत्पत्ति से सम्बन्धित भौतिक नियमों को खोजने का प्रयास करते  रहे। इसी प्रयास को आगे बढ़ाते हुये भौतिकविदों ने फ़्राँस से स्विट्ज़रलैंड तक विस्तृत विशाल प्रयोगशाला  का निर्माण किया1। जिसमें इस शोध से सम्बन्धित दुनियाँ के सभी महत्वपूर्ण देशों की सरकारों ने आर्थिक योगदान दिया। वैज्ञानिकों ने इस प्रयोगशाला कोलार्ज़ हैड्रोन कोलाइडरका नाम दिया। भौतिकविद ये जानना चाहते हैं कि चट्टानें, पेड़, जीव, मानव किन्हीं खास पदार्थ की खास संरचना के साथ क्यों अस्तित्व में हैं?
     भौतिकी के सिद्धान्तों से यह सिद्ध हो चुका है कि बृह्माण्ड की रचना १३. करोड़ वर्ष पहलेबिग बैंग के साथ हुई थी। वैज्ञानिक मानते हैं  किबिग बैंगसे पहले  पदार्थ अस्तित्व में नहीं था।बिग बैंगके समय पदार्थ की उत्पत्ति हुई और बृह्मांड के भौतिक नियम अस्तित्व में आये।बिग बैंगके साथ  ऊर्जा से पदार्थ बना। इस तथ्य के सम्बन्ध में अधिकतम वैज्ञानिकों की सहमति बन चुकी है। परन्तु अब तक यह एक रहस्य की तरह ही है कि हमारे ग्रह पृथ्वी के आस पास की आकाशगंगाऒं में पदार्थ की मात्रा की मात्रा एन्टीमैटर से कहीं अधिक है। वस्तुतः हमारे आस-पास की आकाशगंगाओं में एन्टीमैटर की मात्रा पदार्थ से अत्यन्त कम है। वैज्ञानिकों के अनुसार , सममिति के आधार परबिग बैंगके समय ऊर्जा से पदार्थ और एन्टीमैटर की समान मात्रा अस्तित्व में आनी चाहिये। चूंकि हमारी आकाशगंगा में पदार्थ की मात्रा एन्टीमैटर की मात्रा से कहीं अधिक है, यही रहस्य वैज्ञानिकों कॊ आकर्षित करता है। यहाँ एक तथ्य और सुनिश्चित कर लेना चाहिये कि जब ऊर्जा से पदार्थ का निर्माण किया जाता है तो पदार्थ और एन्टीमैटर एक साथ समान मात्रा में उत्पन्न होते हैं, इसी तरह जब पदार्थ और एन्टीमैटर को भौतिक रूप से संपर्क में लाया जाता है तो पदार्थ और एन्टीमैटर का अस्तित्व ऊर्जा में परिवर्तित हो जाता है।
    भौतिकविदों का मानना है कि बिग बैंग के समय ऊर्जा से समान मात्रा में  मैटर और ऎन्टीमैटर उत्पन्न होना चाहिये। चूंकि हमारे आस-पास के ग्रहों पर एन्टीमैटर की मात्रा बहुत कम है इसलिये वैज्ञानिक इस असममिति का कारण जानना चाहते हैं। इसी उद्देश्य के लिये दुनिंयाँ के तमाम वैज्ञानिक CERN मेंलार्ज़ हैड्रोन कोलाइडर की सहायता से इस विषय से सम्बन्धित प्रयोगॊम में लगे हैं।
    अगर ऎन्टीमैटर के इतिहास के बारे में बात की जाये तो सबसे पहले एन्टीमैटर शब्द का प्रयोग महान वैज्ञानिक पॉल डिराक ने किया था। गणितीय सूत्रों के हलॊं के आधार पर सबसे पहले उन्हॊंने यह बताया कि धनात्मक ऊर्ज़ा के साथ-साथ ॠणात्मक ऊर्ज़ा का अस्तित्व भी होना चाहिये। इसके बाद लगातार इस दिशा में वैज्ञानिकों की उत्सुकता बढ़ती गयी। कई वैज्ञानिकों को इस विषय पर शोध करने के लिये नोबेल पुरस्कार मिले। सन 1932 में एक युवा वैज्ञानिक कार्ल एंडरसन ने कॉस्मिक किरणों के साथ आ रहे कणों का अध्य्यन करते समय पाया कि इन किरणों के साथ एक कण भी पृथ्वी तक आता है जो कि इलैक्ट्रॉन की तरह है मगर इस कण का आवेश विपरीत है। उसने इसे पॉज़िट्रोन का नाम दिया। बाद में इस कण के अस्तित्व की पुष्टि होने के बाद एंडरसन को 1936 में नोबेल पुरस्कार दिया गया। इस तरह यह घटना एन्टीमैटर के अस्तित्व के सिद्ध होने से सम्बन्धित पहली घटना थी। इसके बाद लगातार इस विषय पर शॊध होता रहा।
     1995 में जब पहली बार एन्टी-कणॊं से एन्टी-परमाणु का निर्माण किया गया तो विश्व के वैज्ञानिक समुदाय में हलचल मच गयी। दुनियाँ के सभी महत्वपूर्ण अखबारों ने इसे प्रमुखता से छापा। पहली बार 1995 में जब नौ एन्टी-हाइड्रोजन परमाणों का निर्माण किया गया तो यह कयास लगाये जाने लगे कि हो सकता है कि हमारी तरह पदार्थ से बने ग्रह, आकाशगंगा की तरह एन्टी-मैटर से बने ग्रह और आकाशगंगायें अस्तित्व में होनी चाहिये। कुछ विज्ञान गल्पों और फ़िक्शन कहानियों में तो एन्टीमैटर से बने मानवॊं की कल्पना की गयी।
    अभी कुछ दिनों पहले जब CERN में स्थित प्रयोगशाला ALPHA में वैज्ञानिकों ने 38 एन्टीहाइड्रोज़न परमाणुओं को एक जगह इकट्ठा कर लिया तो यह भी सुर्खियों की खबर बना। क्योंकि इन एन्टीमैटर परमाणुओं को एक जगह एकत्र नहीं किया जा सकता, क्योंकि यह एन्टीमैटर के परमाणु मैटर यानि पदार्थ के सम्पर्क में आकर समाप्त हो जाते हैं।लेकिन इस बार वैज्ञानिकों ने नयी तकनीक की सहायता से इन एन्टीमैटर के परमाणुओं को कुछ समय के लिये इकट्ठा कर लिया था। ऎसा करना इस्लिये भी महत्वपूर्ण माना जा रहा है क्योंकि इन एन्टीपरमाणुओं का अध्य्यन करके वैज्ञानिक बिग बैंग के बारे में जानना चाहते है। मगर इन एन्टीपरमाणुओं के अध्य्यन के लिये कुछ समय चहिये, और इतने समय तक इनका अस्तित्व में रहना आवश्यक है।
   यहाँ कुछ भ्रमॊं को दूर कर देना बहुत आवश्यक है। कुछ दिनों पहले प्रसिद्ध उपन्यासकार डेन ब्राउन का एक उपन्यास प्रकाशित हुआ जिसका नाम था एंगेल्स एंड डेमॉन्स । इस उपन्यास में लेखक ने प्रयोगशाला से एन्टीमैटर के चोरी होने की बात कही है फिर लिखा है कि चोरों ने इसका उपयोग बम की तरह किया। वर्तमान में ऎसा सम्भव नहीं है। क्योंकि एन्टी मैटर को किसी कन्टेनर में नहीं रखा जा सकता। यह पदार्थ से क्रिया करके ऊर्जा में परिवर्तित हो जाता है। इस एन्टीमैटर को बहुत ही सुरक्षा से रखा जाता है ताकि यह पदार्थ से क्रिया ना कर सके। इस बीच में यह भी बहुत तेज़ी से चर्चा में आया कि एन्टीमैटर भविश्य में बम बनाने के काम आयेगा। मेरी समझ में वर्तमान में उपस्थित तकनीक की सहायता से इतनी मात्रा में एन्टीमैटर का उत्पादन नहीं किया जा सकता कि एक परमाणु बम की ताकत वाला एन्टीमैटर बम बनाया जा सके। अगर गणना करें तो इतनी मात्रा में एन्टीमैटर का उत्पादन करने में हज़ारों साल लग जायेंगे।
   मीडिया के कुछ माध्यमों में यह खबर भी काफ़ी ज़ोर शोर से आयी कि भविश्य में एन्टीमैटर ऊर्जा की समस्या को सुलझाने के काम आयेगा। मगर यह तब तक सम्भव नहीं होगा जब तक कि हमारे आसपास की किसी आकाशगंगा में एन्टीमैटर से बना कोई ग्रह नहीं मिल जाता। अगर ऎसा हो भी जाता है तो उस एन्टीमैटर कॊ पृथ्वी तक लाना भी चुनौती भरा कार्य होगा। क्योंकि यह पदार्थ के सम्पर्क में आते ही समाप्त हो जायेगा, और हमारे अंतरिक्ष यान आदि तो पदार्थ से ही बने होंगे। वर्तमान में मौजूद लकनीकों की सहायता से हम एन्टीमैटर का जितना उत्पादन करते है, उससे प्राप्त ऊर्जा से कई लाख गुना ऊर्जा इसके उत्पादन में खर्च हो जाती है। ऎसी परिस्थितियों में इसे ऊर्जा समस्या के समाधान के रूप में नहीं देखा जाना चाहिये। अगर हम आज तक प्रयोगशालाऒं में उत्पादन किये गये एन्टीमैटर को इकट्ठा करके ऊर्जा में परिवर्तित करें तो आज तक उत्पादित एन्टीमैटर से एक बल्ब जलाया जा सकता है, और वो भी कुछ सेकेन्ड्स के लिये।
   एन्टीमैटर का उत्पादन वर्तमान में मात्र वैज्ञानिक प्रयोगों के लिये हो रहा है। वैज्ञानिक इस प्रयास में लगे हैं कि किसी तरह इन एन्टीपरमाणुओं को कुछ समय के लिये अस्तित्व में रखा जा सके ताकि इनका अच्छी तरह से अध्य्यन हो सके। एन्टीमैटर के बारे में विस्तृत अध्य्यन करने के बाद हम ब्रह्माण्ड की उत्पत्ति के सम्बन्ध में सार्थक सिद्धान्त और निष्कर्ष निकाल पायेंगे। वर्तमान में हो रहा शोध भी इसी महत्वपूर्ण रहस्य से परदा हटाने के लिये किया जा रहा है।