Wednesday, January 19, 2011

एन्टीमैटर- बृह्माण्ड की उत्पत्ति का रहस्य

       हमारा अस्तित्व क्यों है?” यह प्रश्न सदैव से मानव मष्तिस्क के लिये एक महत्वपूर्ण प्रश्न रहा है। दार्शनिकों के लिये कुछ सदियों से और भौतिकविदों के लिये कुछ दशकॊं से यह बहस का महत्वपूर्ण मुद्दा रहा। जहाँ दार्शनिक मानव जीवन के लक्ष्य अथवा भाग्य  को आधार बनाकर इस प्रश्न का उत्तर खोजने का प्रयास करते रहे वहीं भौतिकविद बृह्माण्ड की उत्पत्ति से सम्बन्धित भौतिक नियमों को खोजने का प्रयास करते  रहे। इसी प्रयास को आगे बढ़ाते हुये भौतिकविदों ने फ़्राँस से स्विट्ज़रलैंड तक विस्तृत विशाल प्रयोगशाला  का निर्माण किया1। जिसमें इस शोध से सम्बन्धित दुनियाँ के सभी महत्वपूर्ण देशों की सरकारों ने आर्थिक योगदान दिया। वैज्ञानिकों ने इस प्रयोगशाला कोलार्ज़ हैड्रोन कोलाइडरका नाम दिया। भौतिकविद ये जानना चाहते हैं कि चट्टानें, पेड़, जीव, मानव किन्हीं खास पदार्थ की खास संरचना के साथ क्यों अस्तित्व में हैं?
     भौतिकी के सिद्धान्तों से यह सिद्ध हो चुका है कि बृह्माण्ड की रचना १३. करोड़ वर्ष पहलेबिग बैंग के साथ हुई थी। वैज्ञानिक मानते हैं  किबिग बैंगसे पहले  पदार्थ अस्तित्व में नहीं था।बिग बैंगके समय पदार्थ की उत्पत्ति हुई और बृह्मांड के भौतिक नियम अस्तित्व में आये।बिग बैंगके साथ  ऊर्जा से पदार्थ बना। इस तथ्य के सम्बन्ध में अधिकतम वैज्ञानिकों की सहमति बन चुकी है। परन्तु अब तक यह एक रहस्य की तरह ही है कि हमारे ग्रह पृथ्वी के आस पास की आकाशगंगाऒं में पदार्थ की मात्रा की मात्रा एन्टीमैटर से कहीं अधिक है। वस्तुतः हमारे आस-पास की आकाशगंगाओं में एन्टीमैटर की मात्रा पदार्थ से अत्यन्त कम है। वैज्ञानिकों के अनुसार , सममिति के आधार परबिग बैंगके समय ऊर्जा से पदार्थ और एन्टीमैटर की समान मात्रा अस्तित्व में आनी चाहिये। चूंकि हमारी आकाशगंगा में पदार्थ की मात्रा एन्टीमैटर की मात्रा से कहीं अधिक है, यही रहस्य वैज्ञानिकों कॊ आकर्षित करता है। यहाँ एक तथ्य और सुनिश्चित कर लेना चाहिये कि जब ऊर्जा से पदार्थ का निर्माण किया जाता है तो पदार्थ और एन्टीमैटर एक साथ समान मात्रा में उत्पन्न होते हैं, इसी तरह जब पदार्थ और एन्टीमैटर को भौतिक रूप से संपर्क में लाया जाता है तो पदार्थ और एन्टीमैटर का अस्तित्व ऊर्जा में परिवर्तित हो जाता है।
    भौतिकविदों का मानना है कि बिग बैंग के समय ऊर्जा से समान मात्रा में  मैटर और ऎन्टीमैटर उत्पन्न होना चाहिये। चूंकि हमारे आस-पास के ग्रहों पर एन्टीमैटर की मात्रा बहुत कम है इसलिये वैज्ञानिक इस असममिति का कारण जानना चाहते हैं। इसी उद्देश्य के लिये दुनिंयाँ के तमाम वैज्ञानिक CERN मेंलार्ज़ हैड्रोन कोलाइडर की सहायता से इस विषय से सम्बन्धित प्रयोगॊम में लगे हैं।
    अगर ऎन्टीमैटर के इतिहास के बारे में बात की जाये तो सबसे पहले एन्टीमैटर शब्द का प्रयोग महान वैज्ञानिक पॉल डिराक ने किया था। गणितीय सूत्रों के हलॊं के आधार पर सबसे पहले उन्हॊंने यह बताया कि धनात्मक ऊर्ज़ा के साथ-साथ ॠणात्मक ऊर्ज़ा का अस्तित्व भी होना चाहिये। इसके बाद लगातार इस दिशा में वैज्ञानिकों की उत्सुकता बढ़ती गयी। कई वैज्ञानिकों को इस विषय पर शोध करने के लिये नोबेल पुरस्कार मिले। सन 1932 में एक युवा वैज्ञानिक कार्ल एंडरसन ने कॉस्मिक किरणों के साथ आ रहे कणों का अध्य्यन करते समय पाया कि इन किरणों के साथ एक कण भी पृथ्वी तक आता है जो कि इलैक्ट्रॉन की तरह है मगर इस कण का आवेश विपरीत है। उसने इसे पॉज़िट्रोन का नाम दिया। बाद में इस कण के अस्तित्व की पुष्टि होने के बाद एंडरसन को 1936 में नोबेल पुरस्कार दिया गया। इस तरह यह घटना एन्टीमैटर के अस्तित्व के सिद्ध होने से सम्बन्धित पहली घटना थी। इसके बाद लगातार इस विषय पर शॊध होता रहा।
     1995 में जब पहली बार एन्टी-कणॊं से एन्टी-परमाणु का निर्माण किया गया तो विश्व के वैज्ञानिक समुदाय में हलचल मच गयी। दुनियाँ के सभी महत्वपूर्ण अखबारों ने इसे प्रमुखता से छापा। पहली बार 1995 में जब नौ एन्टी-हाइड्रोजन परमाणों का निर्माण किया गया तो यह कयास लगाये जाने लगे कि हो सकता है कि हमारी तरह पदार्थ से बने ग्रह, आकाशगंगा की तरह एन्टी-मैटर से बने ग्रह और आकाशगंगायें अस्तित्व में होनी चाहिये। कुछ विज्ञान गल्पों और फ़िक्शन कहानियों में तो एन्टीमैटर से बने मानवॊं की कल्पना की गयी।
    अभी कुछ दिनों पहले जब CERN में स्थित प्रयोगशाला ALPHA में वैज्ञानिकों ने 38 एन्टीहाइड्रोज़न परमाणुओं को एक जगह इकट्ठा कर लिया तो यह भी सुर्खियों की खबर बना। क्योंकि इन एन्टीमैटर परमाणुओं को एक जगह एकत्र नहीं किया जा सकता, क्योंकि यह एन्टीमैटर के परमाणु मैटर यानि पदार्थ के सम्पर्क में आकर समाप्त हो जाते हैं।लेकिन इस बार वैज्ञानिकों ने नयी तकनीक की सहायता से इन एन्टीमैटर के परमाणुओं को कुछ समय के लिये इकट्ठा कर लिया था। ऎसा करना इस्लिये भी महत्वपूर्ण माना जा रहा है क्योंकि इन एन्टीपरमाणुओं का अध्य्यन करके वैज्ञानिक बिग बैंग के बारे में जानना चाहते है। मगर इन एन्टीपरमाणुओं के अध्य्यन के लिये कुछ समय चहिये, और इतने समय तक इनका अस्तित्व में रहना आवश्यक है।
   यहाँ कुछ भ्रमॊं को दूर कर देना बहुत आवश्यक है। कुछ दिनों पहले प्रसिद्ध उपन्यासकार डेन ब्राउन का एक उपन्यास प्रकाशित हुआ जिसका नाम था एंगेल्स एंड डेमॉन्स । इस उपन्यास में लेखक ने प्रयोगशाला से एन्टीमैटर के चोरी होने की बात कही है फिर लिखा है कि चोरों ने इसका उपयोग बम की तरह किया। वर्तमान में ऎसा सम्भव नहीं है। क्योंकि एन्टी मैटर को किसी कन्टेनर में नहीं रखा जा सकता। यह पदार्थ से क्रिया करके ऊर्जा में परिवर्तित हो जाता है। इस एन्टीमैटर को बहुत ही सुरक्षा से रखा जाता है ताकि यह पदार्थ से क्रिया ना कर सके। इस बीच में यह भी बहुत तेज़ी से चर्चा में आया कि एन्टीमैटर भविश्य में बम बनाने के काम आयेगा। मेरी समझ में वर्तमान में उपस्थित तकनीक की सहायता से इतनी मात्रा में एन्टीमैटर का उत्पादन नहीं किया जा सकता कि एक परमाणु बम की ताकत वाला एन्टीमैटर बम बनाया जा सके। अगर गणना करें तो इतनी मात्रा में एन्टीमैटर का उत्पादन करने में हज़ारों साल लग जायेंगे।
   मीडिया के कुछ माध्यमों में यह खबर भी काफ़ी ज़ोर शोर से आयी कि भविश्य में एन्टीमैटर ऊर्जा की समस्या को सुलझाने के काम आयेगा। मगर यह तब तक सम्भव नहीं होगा जब तक कि हमारे आसपास की किसी आकाशगंगा में एन्टीमैटर से बना कोई ग्रह नहीं मिल जाता। अगर ऎसा हो भी जाता है तो उस एन्टीमैटर कॊ पृथ्वी तक लाना भी चुनौती भरा कार्य होगा। क्योंकि यह पदार्थ के सम्पर्क में आते ही समाप्त हो जायेगा, और हमारे अंतरिक्ष यान आदि तो पदार्थ से ही बने होंगे। वर्तमान में मौजूद लकनीकों की सहायता से हम एन्टीमैटर का जितना उत्पादन करते है, उससे प्राप्त ऊर्जा से कई लाख गुना ऊर्जा इसके उत्पादन में खर्च हो जाती है। ऎसी परिस्थितियों में इसे ऊर्जा समस्या के समाधान के रूप में नहीं देखा जाना चाहिये। अगर हम आज तक प्रयोगशालाऒं में उत्पादन किये गये एन्टीमैटर को इकट्ठा करके ऊर्जा में परिवर्तित करें तो आज तक उत्पादित एन्टीमैटर से एक बल्ब जलाया जा सकता है, और वो भी कुछ सेकेन्ड्स के लिये।
   एन्टीमैटर का उत्पादन वर्तमान में मात्र वैज्ञानिक प्रयोगों के लिये हो रहा है। वैज्ञानिक इस प्रयास में लगे हैं कि किसी तरह इन एन्टीपरमाणुओं को कुछ समय के लिये अस्तित्व में रखा जा सके ताकि इनका अच्छी तरह से अध्य्यन हो सके। एन्टीमैटर के बारे में विस्तृत अध्य्यन करने के बाद हम ब्रह्माण्ड की उत्पत्ति के सम्बन्ध में सार्थक सिद्धान्त और निष्कर्ष निकाल पायेंगे। वर्तमान में हो रहा शोध भी इसी महत्वपूर्ण रहस्य से परदा हटाने के लिये किया जा रहा है।

3 comments:

  1. विस्तार से लिखा गया अच्छा लेख.. अब से आपके ब्लॉग पर नजर टिकी रहेगी..

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  2. सारगर्भित आलेख..अच्छा लगा.
    कृपया निरंतरता बनाये रखियेगा.

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