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लन्दन में रीडिंग विश्वविद्यालय के साइबर्नेटिक्स विभाग में प्रोफ़ेसर केविन वारविक भी उन वैज्ञानिकों की श्रॆणी में रखे जा सकते हैं, जो कि अपनॆ अनुसन्धान के द्वारा प्रकृति और मानव के बीच के रिश्ते की परिभाषा बदल रहे हैं| अगर उनकॆ अनुसन्धान पर नज़र डाली जाये तो उनके अनुसन्धान कॊ दो स्तरॊं में देखा जा सकता है| साइबोर्ग पर अनुसन्धान के क्रम में, शुरुआत २४ मई,१९९८ से उन्हॊनॆ अपनॆ शरीर में ही खाल के नीचे एक RFID ट्रान्समिटर लगा कर की थी| ट्रान्समिटर इम्प्लान्टॆशन का प्रमुख उद्देश्य यह जांचना था कि इस तरह के ट्रान्स्मिटर चिप को शरीर आसानी से स्वीकार करता है या नहीं? यह भी कि इस तरह की चिप से क्या शरीर अर्थवान सिग्नल प्राप्त करके उनके अनुसार प्रतिक्रिया दे पाता है या नहीं? इस चिप की सहायता से वे अपने आस-पास लगे कम्प्यूटर नियन्त्रित यन्त्रॊं को सिर्फ़ सॊचकर चला सकते थे| केविन वारविक ने उस समय के अनुभवॊं के बारे में लिखा है:- “जब सुबह-सुबह मैं चिप के साथ, रीडिंग विश्वविद्यालय के साइबर्नेटिक्स विभाग पहुँचा तो परदे और खिड्कियाँ अपने आप खुल गयॆ, कम्प्यूटर्स स्वतः चालू हो गये यहां तक कि कम्प्यूटर्स ने मुझॆ हैलॊ बोला”|उन्होने लिखा कि जब उस चिप को मेरे शरीर से निकाल दिया गया मैं अपनॆ आप को पहले की अपेक्षा कम शक्तियों वाला मह्सूस कर रहा हूँ| इसी दिशा में दूसरा प्रय़ोग हुआ १४ मार्च २००२ कॊ, रीडिंग विश्वविद्यालय के ही एक डॊक्टर मार्क गैसोन की सहायता से| इस बार केविन वारविक ने अपने बाँये हाथ में एक चिप को सर्ज़री के दौरान लगाया और चिप की सहायता से अपने तत्रिका तन्त्र को कम्प्युटर से जोड लिया| इस तरह वे नील हर्बिसन के बाद दुनियाँ के सबसे महत्वपूर्ण साइबोर्ग बन गये|
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अगर ध्यान से देखा जाये तो इस तरह के आविष्कार दुनिंयाँ में तमाम तरह की शारीरिक और मानसिक कमज़ॊरियॊं वाले लोगों के लिये वरदान की तरह हैं| हम जानते हैं कि वैज्ञानिक हाथ पाँव से लेकर दिल के पेसमेकर तक के कृत्रिम यंत्र बना चुके हैं| अब तक दिमाग ही एक ऐसी संस्था है जिसे कि पूर्ण रूप से बनाना अभी बाकी है| अगर हम सिंथेटिक दिमाग नहीं बना सकते और इसके स्थान पर कृत्रिम बुद्धिमत्ता वाले कम्प्यूटर्स का इस्तेमाल बिना किसी समस्या के कर सकते है तो कोइ बुरी बात नहीं है| साइबोर्गॊं की मेडीसिन के क्षेत्र में उल्लेखनीय भूमिका हो सकती है| अन्ध्त्व, बहरापन से लेकर सीज़ोफ़्रेनिया और अल्ज़ाइमर जैसे रोगों का इलाज़ इस तकनीक की सहायता से कियॆ जाने के प्रयास किये गये हैं और शुरुआती सफ़लता भी मिली है| साइबोर्ग के अम जीवन मे आ जाने पर स्कूलॊं मे पढाई के मायने बदल जायेंगे| शिक्षा व्यवस्था कॊ एक बार फिर से निर्मित करना पडेगा| बडी बडी सूचनायें याद करना सेकेन्ड का काम हो जायेगा| ये आविष्कार एक नवजात की तरह है जिसके चिक्ने पांव देखकर उसके भविष्य के बारे मे बोलना जल्दबाज़ी होगी|
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अंततः , दुनियां भर में जिस तरह सामाजिक और राजनीतिक नेतृत्व पूंजी के आगे नतमस्तक है, वैज्ञानिकॊं को अपने आविष्कारों के सकारात्मक प्रयॊगॊं के प्रति और समाज से सरॊकारॊं के प्रति स्वयं को और अधिक सचॆत और सतर्क बनाना होगा| साथ ही जनता को भी एक हद तक जागरुक होकर आविष्कारॊं से जुडी ज़िम्मेदारियों को समझना होगा| एक परमाणु बम से जहाँ कई नस्लें तबाह की जा सकती है वहीं इसी तकनीक की मदद से अनगिनत घरॊं को रॊशन भी किया जा सकता है|
मेहरबान ****************************************************
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