Thursday, February 24, 2011

मानव की अगली पीढी: साइबोर्ग

            चर्चित वैज्ञानिक क्रेग वेन्टर के कुछ समय पहले कृत्रिम कोशिका के निर्माण की घोषणा के बाद मानव प्रकृति सम्बन्धॊं पर एक नयी बहस शुरु हो गयी है| भले ही उन्होंने नयी कोशिका का निर्माण नहीं किया है फिर भी इस तरह का प्रयोग मानव के भविष्य पर गहरा प्रभाव डालेगा| कृत्रिम  जीवन की रचना के इतर भी विज्ञान की कई अन्य दिशाऒं में शॊध कार्य जारी है, जिस पर कि बहस होना ना सिर्फ़ महत्वपूर्ण है बल्कि आवश्यक भी हॊ पडा है|
     लन्दन में रीडिंग विश्वविद्यालय के साइबर्नेटिक्स विभाग में प्रोफ़ेसर केविन वारविक भी उन वैज्ञानिकों की श्रॆणी में रखे जा सकते हैं, जो कि अपनॆ अनुसन्धान के द्वारा प्रकृति और मानव के बीच के रिश्ते की परिभाषा बदल रहे हैं| अगर उनकॆ अनुसन्धान पर नज़र डाली जाये तो उनके अनुसन्धान कॊ दो स्तरॊं में देखा जा सकता है| साइबोर्ग पर अनुसन्धान के क्रम में, शुरुआत २४ मई,१९९८ से उन्हॊनॆ अपनॆ शरीर में ही खाल के नीचे एक  RFID  ट्रान्समिटर लगा कर की थी| ट्रान्समिटर इम्प्लान्टॆशन का प्रमुख उद्देश्य यह जांचना था कि इस तरह के ट्रान्स्मिटर चिप को शरीर आसानी से स्वीकार करता है या नहीं? यह भी कि इस तरह की चिप से क्या शरीर अर्थवान सिग्नल प्राप्त करके उनके अनुसार प्रतिक्रिया दे पाता है या नहीं? इस चिप की सहायता से वे अपने आस-पास लगे कम्प्यूटर नियन्त्रित  यन्त्रॊं को सिर्फ़ सॊचकर चला सकते थे| केविन वारविक ने उस समय के अनुभवॊं के बारे में लिखा है:- जब सुबह-सुबह मैं चिप के साथ, रीडिंग विश्वविद्यालय के साइबर्नेटिक्स विभाग पहुँचा तो परदे और खिड्कियाँ अपने आप खुल गयॆ,  कम्प्यूटर्स स्वतः चालू हो गये यहां तक कि कम्प्यूटर्स ने मुझॆ हैलॊ बोला|उन्होने लिखा कि जब उस चिप को मेरे शरीर से निकाल दिया गया मैं अपनॆ आप को पहले की अपेक्षा कम शक्तियों वाला मह्सूस कर रहा हूँ| इसी दिशा में दूसरा प्रय़ोग हुआ १४ मार्च २००२ कॊ, रीडिंग विश्वविद्यालय के ही एक  डॊक्टर मार्क गैसोन की सहायता से| इस बार केविन वारविक ने अपने बाँये हाथ में एक चिप को सर्ज़री के दौरान लगाया और चिप की  सहायता से अपने तत्रिका तन्त्र को कम्प्युटर से जोड लिया| इस तरह वे नील हर्बिसन के बाद दुनियाँ के सबसे महत्वपूर्ण साइबोर्ग बन गये|

     साइबोर्ग उस मानव या जीव को कहा जा सकता है, जो कि अपनी शारीरिक या मानसिक क्षमताऒं में वृद्धि के लिये टैक्नोलोजी का सहारा लेता हो| लेकिन चश्मा जैसे यन्त्र पहनने वाले को साइबोर्ग नहीं कहा जा सकता क्यॊंकि इसमें किसी भी तरह से साइबर्नेटिक्स या कम्प्यूटर्स का इस्तेमाल नहीं है| विशेषज्ञॊं का ये मानना है कि साइबोर्ग मानव तक्नीक का  ऐसा संगम है, जिसमें यान्त्रिक स्थिति में किये गये परिवर्तनॊं को शारीरिक या मानसिक प्रतिक्रियायॊं से सम्बद्ध किया जा सके| ठीक उसी तरह जैसे कम्प्यूटर को इंटरनेट से जोड्कर कम्प्यूटर की क्षमता में काफ़ी वृद्धि कर दी जाती है|वर्तमान के साइबोर्ग, मानव के दिमाग का मशीन के साथ संगम हैं| केविन वारविक ने जब स्वयं को चिप के सहारे कम्प्यूटर से जोडा तो मानव की शक्तियॊं के विकास का एक अध्याय शुरु हो चुका था| केविन वारविक के तन्त्रिका तन्त्र को इंटरनेट से कोलम्बिया विश्वविद्यलय, न्यूयॊर्क में जोडा गया और रीडिंग विश्वविद्यालय लन्दन मे रखे रोबोट को भी इंटरनॆट से जोडा गया| इस प्रक्रिया के सम्पन्न होने के बाद केविन अपने हाथ को जिस तरह घुमाते उसी तरह से रॊबॊट भी घुमाता| यहाँ तक कि जब ऐसी ही चिप उनकी  पत्‍नी ने लगा ली और वे जब इन्टर्नॆट के ज़रिये एक दूसरे से जुडते, अपनी भावनायें बिना बोले आपस में बाँट पाते| इसे उन्होंने टॆलीपेथी के जैसा कुछ कहा| वे बिना भाषा के अपने विचार बाँट रहे थॆ| इंटरनेट से जुड जाने पर उनकी याद्दाश्त में अप्रत्याशित वृद्धि हो गयी थी| कुछ समय के बाद केविन वारविक ने चिप अपनी बाँह से अलग कर ली|
     अगर ध्यान से देखा जाये तो इस तरह के आविष्कार दुनिंयाँ में तमाम तरह की शारीरिक और मानसिक कमज़ॊरियॊं वाले लोगों के लिये वरदान की तरह हैं| हम जानते हैं कि वैज्ञानिक हाथ पाँव से लेकर दिल के पेसमेकर तक के कृत्रिम यंत्र बना चुके हैं| अब तक दिमाग ही एक ऐसी संस्था है जिसे कि पूर्ण रूप से बनाना अभी बाकी है| अगर हम सिंथेटिक दिमाग नहीं बना सकते और इसके स्थान पर कृत्रिम बुद्धिमत्ता वाले कम्प्यूटर्स का इस्तेमाल बिना किसी समस्या के कर सकते है तो कोइ बुरी बात नहीं है|  साइबोर्गॊं की मेडीसिन के क्षेत्र में उल्लेखनीय भूमिका हो सकती है| अन्ध्त्व, बहरापन से लेकर सीज़ोफ़्रेनिया और अल्ज़ाइमर जैसे रोगों का इलाज़ इस तकनीक की सहायता से कियॆ जाने के प्रयास किये गये हैं और शुरुआती सफ़लता भी मिली है| साइबोर्ग के अम जीवन मे आ जाने पर स्कूलॊं मे पढाई के मायने बदल जायेंगे| शिक्षा व्यवस्था कॊ एक बार फिर से निर्मित करना पडेगा| बडी बडी सूचनायें याद करना सेकेन्ड का काम हो जायेगा| ये आविष्कार एक नवजात की तरह है जिसके चिक्ने पांव देखकर उसके भविष्य के बारे मे बोलना जल्दबाज़ी होगी|
     यहाँ पर कुछ समय ठहरकर यह भी सुनिश्‍चित कर लेना चाहिये कि हर एक नयी खॊज अपने साथ कई नयी ज़िम्मेदारियाँ लेकर आती है| अगर उसका इस्तेमाल उन ज़िम्मेदारियोँ को दरकिनार करते हुए किया जाता है तो बहुत ही कल्याण्कारी खोज विनाश का आधार बन जाती है| आज जब चारॊं ऒर पूँजी का बोलबाला है, बाज़ार पूरी तरह से अनियन्त्रित हो चुका है, ऐसे में नये आविष्कारॊं कॆ सही इस्तेमाल की सम्भावना बहुत ही कम हो जाती है| साइबोर्ग पीढी को पोस्ट-ह्यूमन पीढी माना जा रहा है| उत्‍तर- मानव पीढी क मतलब है कि चॆतना का शरीर मे ओर्गॆनिज़्म की तरह होना न कि ऒर्गन की तरह होना| साइबोर्ग से सम्बन्धित अब तक के सबसे विश्वस्यनीय दस्तवेज़ लिखने वाली डॊना हारावॆ साइबोर्ग मेनीफ़ेस्टो में लिखती है कि साइबोर्ग मानवता के अन्तिम बिन्दु होंगे; और मानवीय सह्जीवन के भी| वहीँ वैज्ञानिक गुस्तएरसन कहते हैं सबसे बडी चिंता इस बात की है कि चीज़ें नियन्त्रण के बाहर हो चुकीं है, हो सकता है कि हमारा विनाश उसी टैक्नोलोज़ी के द्वारा हो जिसका हमने आविष्कार किया है| चिंता जायज़ है क्यॊंकि जिस तरह से अभी जब यह साइबोर्ग टेक्नोलोज़ी अभी शैशव अवस्था मे है और इसके सेना और युद्धॊं मे प्रयोगों की बात की जा रही है अगर ऐसे रोबोट जो कि न्य़ूयॊर्क से संचालित होकर दुनियाँ के किसी हिस्से मे दिये गये आदेशॊं का पालन कर सकते है, परमाणु बमॊं से भी ज़्यादा खतरनाक सिद्ध होंगे|
   अंततः , दुनियां भर में जिस तरह सामाजिक और राजनीतिक नेतृत्व पूंजी के आगे नतमस्तक है, वैज्ञानिकॊं को अपने आविष्कारों के सकारात्मक प्रयॊगॊं के प्रति और समाज से सरॊकारॊं के प्रति स्वयं को और अधिक सचॆत और सतर्क बनाना होगा| साथ ही जनता को भी एक हद तक जागरुक होकर आविष्कारॊं से जुडी ज़िम्मेदारियों को समझना होगा| एक परमाणु बम से जहाँ कई नस्लें तबाह की  जा सकती है वहीं इसी तकनीक की मदद से अनगिनत घरॊं को रॊशन भी किया जा सकता है|
                                                                                                                              मेहरबान


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