----मेहेर
वान
दीपावली गुज़रते ही देश के विभिन्न शहरों से वायुप्रदूषण और ध्वनिप्रदूषण से जुड़ी खबरें आने लगीं हैं। पश्चिम बंगाल प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड की रिपोर्ट के अनुसार दीपावली त्यौहार के बाद कोलकाता के वातावरण में हानिकारक गैस सल्फ़र डाई आक्साइड की मात्रा दो गुनी से भी अधिक मापी गयी है, कोलकता के कई अन्य स्थानों पर नाइट्रोजन डाई आक्साइड की मात्रा भी सामान्य से काफ़ी ऊपर पायी गयी है। वहीं वातावरण में हानिकारक पदार्थों के सूक्ष्म कणों की मात्रा भी सामान्य से तीन गुनी मापी गयी है। कोलकाता की संयुक्त कमिश्नर दमयन्ती सेन ने बताया कि दिवाली के दिन 713 व्यक्ति प्रतिबन्धित सीमा से ज़्यादा आवाज वाले पटाखे चलाते हुये गिरफ़्तार किये गये हैं और 883 किलोग्राम प्रतिबन्धित पटाखे बरामद किये गये हैं। इससे भी बुरा हाल चेन्नई का है, यहाँ के कुछ स्थानों पर वायु में हनिकारक पदार्थों के सूक्ष्म कणों की मात्रा सामान्य से चौदह गुनी मापी गयी है। तमिलनाडु प्रदूषण नियंत्रण बॊर्ड ने इस साल कुछ विशेष स्थानों पर वायु और ध्वनि प्रदूषण मापक यंत्र लगाये थे जिनसे दीपावली के दिनों में पूरे समय प्रदूषण पर नज़र रखी गयी। दिल्ली समेत अन्य शहरों में भी वायु में हानिकारक गैसों और ज़हरीले सूक्ष्म कणॊं की मात्रा सामान्य से कई गुनी पायी गयी है। वातावरण में अचानक बढी हानिकारक और ज़हरीले पदार्थों की यह मात्रा सामान्य होने में काफ़ी समय लग जायेगा। इन दिनों में ये गैसें और अतिसूक्ष्म कण हमारी साँस के साथ फ़ेफ़ेड़ों में जाकर कई बीमारियाँ फ़ैला रहे हैं।
दीपावली गुज़रते ही देश के विभिन्न शहरों से वायुप्रदूषण और ध्वनिप्रदूषण से जुड़ी खबरें आने लगीं हैं। पश्चिम बंगाल प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड की रिपोर्ट के अनुसार दीपावली त्यौहार के बाद कोलकाता के वातावरण में हानिकारक गैस सल्फ़र डाई आक्साइड की मात्रा दो गुनी से भी अधिक मापी गयी है, कोलकता के कई अन्य स्थानों पर नाइट्रोजन डाई आक्साइड की मात्रा भी सामान्य से काफ़ी ऊपर पायी गयी है। वहीं वातावरण में हानिकारक पदार्थों के सूक्ष्म कणों की मात्रा भी सामान्य से तीन गुनी मापी गयी है। कोलकाता की संयुक्त कमिश्नर दमयन्ती सेन ने बताया कि दिवाली के दिन 713 व्यक्ति प्रतिबन्धित सीमा से ज़्यादा आवाज वाले पटाखे चलाते हुये गिरफ़्तार किये गये हैं और 883 किलोग्राम प्रतिबन्धित पटाखे बरामद किये गये हैं। इससे भी बुरा हाल चेन्नई का है, यहाँ के कुछ स्थानों पर वायु में हनिकारक पदार्थों के सूक्ष्म कणों की मात्रा सामान्य से चौदह गुनी मापी गयी है। तमिलनाडु प्रदूषण नियंत्रण बॊर्ड ने इस साल कुछ विशेष स्थानों पर वायु और ध्वनि प्रदूषण मापक यंत्र लगाये थे जिनसे दीपावली के दिनों में पूरे समय प्रदूषण पर नज़र रखी गयी। दिल्ली समेत अन्य शहरों में भी वायु में हानिकारक गैसों और ज़हरीले सूक्ष्म कणॊं की मात्रा सामान्य से कई गुनी पायी गयी है। वातावरण में अचानक बढी हानिकारक और ज़हरीले पदार्थों की यह मात्रा सामान्य होने में काफ़ी समय लग जायेगा। इन दिनों में ये गैसें और अतिसूक्ष्म कण हमारी साँस के साथ फ़ेफ़ेड़ों में जाकर कई बीमारियाँ फ़ैला रहे हैं।
आँकड़े बताते हैं
कि शहरों में हर दिवाली के बाद अस्पतालों में साँस और श्वसन तंत्र से सम्बन्धित
रोगियों की संख्या सामान्य से कई गुना अधिक हो जाती है, इसके साथ ही बच्चों में
आँखों से जुड़ी समस्यायें भी दीपावली के वायुप्रदूषण के कारण बढ़ जातीं हैं। शहरों
में अधिक आबादी घनत्व होने के कारण पहले से ही वायुप्रदूषण सामान्य मानकों से अधिक
होता है। दीवाली में तेज़ आवाज़ वाले, हानिकारक पदार्थों से बने पटाखों और फ़ुलझड़ियों
के कारण प्रदूषण की समस्या और भी भयानक हो जाती है। ये पटाखे निर्माण से लेकर
प्रयोग होने तक ज़बर्दस्त तरीके से प्रदूषण फ़ैलाते हैं।
दीवाली पर इस्तेमाल
होने वाले पटाखे और फ़ुलझड़ियाँ बनाने में जिन पदार्थों का इस्तेमाल किया जाता है वे
पदार्थ बहुत ही हानिकारक होते हैं, इनमें से अधिकतर पदार्थ ज़हरीले भी होते हैं।
पटाखे फ़ोड़ने पर उत्सर्जित होने वाले पदार्थों में ताँबा, कैडमियम, लैड, मैग्नीशियम,
सोडियम, ज़िंक, पोटेशियम समेत सल्फ़र डाई ऑक्साइड, नाइट्रिक ऑक्साइड, नाइट्रोजन डाई
ऑक्साइड और अन्य हानिकारक गैसें प्रमुख हैं। कॉपर यानि ताँबा के अतिसूक्ष्म कण
हमारी साँस की नली में तेज़ जलन पैदा करते हैं। कैडमियम एक ज़हरीला पदार्थ है और यह
किडनी को गन्भीर नुकसान पहुंचा सकता है। अत्यधिक मात्रा में कैडमियम शरीर में जाने
से से उच्च रक्त दाब की शिकायत हो सकती है। पटाखों के निर्माण में लैड का उपयोग आवश्यक
रुप से होता है। शायद बहुत कम लोगों को जानकारी हो कि लैड मानवों के केन्द्रीय
तंत्रिका तंत्र पर आक्रमण करता है, सामान्य से अधिक मात्रा में शरीर में जाने से
कैंसर होने का खतरा भी रहता है। पटाखों से निकलने वाली गैसें भी वातावरण में
प्रदूषण उत्पना करतीं हैं और साँस से रोग फ़ैलाने में सहायक होतीं हैं। जो मज़दूर इनकी सहायता से पटाखों का निर्माण करते हैं उन्हें
इनसे होने वाली हानियों के बारे में जानकारी नहीं होती, और वे अपने शरीरों को
गम्भीर नुकसान पहुँचाते हैं। इस प्रदूषण से छोटे बच्चों को सबसे अधिक मुश्किल होती
है, बहुत से बच्चों को इन ज़हरीले सूक्ष्म कणों के आँखों में जाने से आँखों की
समस्यायें बचपन मे ही शुरु हो जाती हैं।
सन 2001 में सुप्रीम कोर्ट ने त्यौहारों पर
पटाखों और फ़ुलझड़ियों से होने वाले ध्वनि और वायु प्रदूषण पर सख्त निर्देश दिये थे।
जिनमें पटाखों की अधिकतम आवाज़ और निर्माण में प्रयुक्त होने वाले तत्वों के
सम्बन्ध में मानक निर्धारित किये गये थे। वन एवं पर्यावरण मंत्रालय और दिल्ली
पुलिस के मानकों के अनुसार पटाखों से होने वाली अधिकतम आवाज़ पटाखे से 4 मीटर दूरी
पर 125 डेसीबल से अधिक नहीं होनी चाहिये। अलग-अलग सर्वे के अनुसार कहा जाता है कि
अस्सी प्रतिशत पटाखे मानकॊं पर खरे नहीं उतरते। यही पटाखे हम अपने क्षणिक आनन्द के
लिये इस्तेमाल करते हैं, मगर यह नहीं सोचते कि यह हमारे लिये कितने नुकसानदायक है।
हमें इनसे होने वाले नुकसानों का इसलिये भी पता नहीं चलता क्यों कि थॊड़ी से
सावधानी बरत कर हम अपने आप को सिर्फ़ जलने से बचाकर यह महसूस करते है कि अब हमें
पटाखों से कॊई नुकसान नहीं है। लेकिन दीवाली के बाद अगर आपको साँस और आंखों से
सम्बन्धित कॊई शिकायत अचानक होती है तो इसमें पटाखों का योगदान प्रमुख होता है।
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